Author(s): कविता रानी (शोधार्थी)१ , डॉ. रेखा रानी (शोध निर्देशक)२
शोधालेख सार: वस्तुतः भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाष चन्द्र बोस की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि नेताजी की करनी और कथनी में कोई अन्तर नहीं था। चूंकि नेताजी कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता थे परन्तु गांधी जी से मतभेद ज्यादा होने पर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और वर्ष 1939 में "फारवर्ड ब्लॉक" नामक राजनीतिक संगठन का निर्माण किया। उन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए विदेशी धरती पर जाकर "आजाद हिन्द फौज" नामक संगठन की बागडोर हाथ में लेकर दिल्ली कूच किया। यहां पर यह बात वर्णित है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 9 मार्च, 1942 को सिंगापुर में आयोजित थाईलैंड एवं मलेशिया की भारतीय स्वतंत्रता लीग की बैठक हुई। इसमें स्वामी सत्यानंद पुरी ने घोषणा की कि बैंकॉक से नेताजी सुभाषचंद्र बोस को संदेश भेजकर तथा पूर्वी एशिया आकर भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन का नेतृत्व करने का आग्रह किया गया, जिसे नेताजी ने स्वीकार कर लिया। लेकिन टोकियो सम्मेलन से पहले एक बड़ा हादसा हो गया, जब 13 मार्च, 1942 को सैगोन से उड़नेवाला विमान लापता हो गया। इस विमान में स्वामी सत्यानंद पुरी, ज्ञानी प्रीतम सिंह, कैप्टन अकरम एवं नीलकांत अय्यर जैसे भारतीय नेता सवार थे। अंततः 28 मार्च, 1942 को रासबिहारी बोस की अध्यक्षता में टोकियो सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में एक परिषद् का गठन किया गया, जिसे भावी रणनीति का निर्धारण करना था। रासबिहारी बोस इसके अध्यक्ष बनाए गए। परिषद् के सदस्यों में राघवन, कैप्टन मोहन सिंह और के पी.के. मेनन प्रमुख थे। इस परिषद् ने नेताजी को पूर्वी एशिया आने का निमंत्रण दिया। परिषद् ने जापान सरकार से अनुरोध किया कि वह जर्मन सरकार के साथ अपने मधुर संबंधों को ध्यान में रखते हुए नेताजी की सुरक्षित यात्रा का प्रबंध करे। इसके साथ ही भारत स्वतंत्रता लीग और आजाद हिंद फौज अपने- अपने उद्देश्यों के लिए समर्पित रूप से कार्य करने लगीं। प्रस्तुत शोध पत्र में भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में आजाद हिंद फौज की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
मूल शब्द: राष्ट्रीय आंदोलन, भारतीय स्वतंत्रता लीग, टोकियो सम्मेलन, फारवर्ड ब्लॉक, आजाद हिंद फौज।
DOI:10.61165/sk.publisher.v11i7.5
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आजाद हिंद फौज की राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका
Pages:23-26