Author(s): Dr. Nitin Kumar
शोधालेख सार: वस्तुतः जब कभी केन्द्र या किसी राज्य में विखण्डित जनादेश के कारण त्रिशंकु लोकसभा या विधानसभा का निर्माण होता है तो उस स्थिति में जो भी सरकार बनती है, वह सरकार प्रायः अल्पमत में होने के कारण अस्थिर प्रकृति की होती है जो कभी भी गिर सकती है। ऐसी सरकारों का निर्माण विभिन्न राजनीतिक दलों के द्धारा गठबंधन राजनीति के रूप में होता है। भारत में वर्ष 1977 में प्रथम बार जो गैर-कांग्रेसी व जनता पार्टी की सरकार बनी थी, वह गठबंधन सरकार थी। इसके बाद वर्ष 1989 के बाद तो भारत की राजनीति में बार-बार ऐसी सरकारों का निर्माण होता रहा है। इन सरकारों के कारण भारतीय राजनीतिक व्यवस्था व संसदीय लोकतंत्र पर नकारात्मक प्रभाव भी दृष्टिगोचर हुआ हैं। आज हमारी राजनीतिक व्यवस्था जिसे हम संसदीय प्रणाली के नाम से जानते हैं, अनेक समस्याओं से जुझ रही है। इनमें प्रमुख हैं - दल-बदल की बीमारी, अल्पमत सरकारें, पीत राजनीति, राजनीति का अपराधीकरण, बेमेल गठबन्धन की राजनीति, राजनीतिक दलांे के सिद्धान्तहीन समझौते, अवसरवादिता की राजनीति, भ्रष्ट एवं स्वार्थपूर्ण राजनीति, सांसदों के अमर्यादित व्यवहार, संसद की परम्पराओं का हनन, राजनीति और राजनेताओं का चारित्रिक पतन, मतदान के प्रति घटता रूझान, क्षेत्रवाद की राजनीति, क्षेत्रीय दलों का क्षेत्रीय चरित्र, जनता व नेताओं में राष्ट्रीय चरित्र का अभाव आदि। प्रस्तुत शोध पत्र में गठबंधन राजनीति के संसदीय लोकतंत्र पर पडने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया है।
मूल शब्द: संसदीय लोकतंत्र, गठबन्धन की राजनीति, अल्पमत सरकारें, क्षेत्रवाद की राजनीति, स्वार्थपूर्ण राजनीति, संसद की परम्पराओं का हनन।
DOI:10.61165/sk.publisher.v11i12.116
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भारत में गठबंधन राजनीति के संसदीय लोकतंत्र पर प्रभाव
Pages:594-599
