Special Issue: Volume 11, Issue 12, December - 2024

नारीका अस्तित्व एक सामाजिक समस्या

Author(s): डॉ. माया बी. मसराम

सारांश: सारांश: स्त्री का मानव सृष्टी मे ही नही वरना समाज निर्माण मे भी महत्त्वपूर्ण स्थान हैI यदि हम विश्व इतिहास का सिंहावलोकन तर येतो हमे यह ज्ञान होता हैI कि संस्कृति की नींव डालने का श्रेय सर्वप्रथम स्त्री को ही हैI क्रमशः स्त्रियों की स्थितियो मे परिवर्तन होने लगाI और पुरुषो ने स्त्री को दुर्बल समजकर उनके अधिकार व कार्य सीमा पर हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दियाI भारत वर्ष मे कुछ ऐसे सामाजिक एंव धार्मिक परिस्थितीया रही हैI जिनके कारण करोडो मनुष्य मानवीय व्यवहार अन्याय एवं अत्याचार के शिकार बने ! पितृसत्ताक सामाजिक व्यवस्था के साथ साथ जाती वर्ग संस्कृती योग्य अनुसार महिलाओ को बदलना आवश्यक हैI मां बेटी की अवधारणा हो या फॅमिलीजम या पोस्टफॅमिलीजम इत्यादी की उसे कही हटकर हमे देखील तो पाते है, की महिला किस किस प्रकार से सशक्त हो सकती हैI जाती धर्म वर्ग और नसलं लंबे-लंबे डिस्कोर्स तो होते ही रहेंगे, साहित्य का अपनी भाषा और बुद्धिमत्ता को दर्शाने की कोशिश करेंगे इतिहासकार अपने सब्जेक्टिव्हिटी और ऑब्जेक्टिविटी तथा धर्मशास्त्री परिप्रेक्षमे अपने वक्तव्य को व्यक्त करेंगे ! किन्तु हमारा भारतीय समाज परिवार बालविवाह अनेक प्रकार के शोषण और वंश चलाने की मानसिकता से आज भी नही उभरा हैI बेटाही वंश को आगे बढता आया है ! और आगे बढायेगा का नारा आज भी हमारे घरो मे सुनने को मिलता है ! नारी की वास्तव में परिस्थिती यह है कि हमारी देश कि नारी समाज के हर एक क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैI लेकिन आज के वर्तमान स्थिती मे मनुवादी मानसिकता का प्रभाव आज भी दिखाई देता हैI इसलिये वह किसी नर की शिकार बन जाती हैI ये वास्तव आज दिखाई देता है !

उपरोक्त सभी बातो को ध्यान मे रखते हुए मै यह कहणा चाहती हु कि , प्रत्येक क्षेत्र चाहे वह सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक क्षेत्र हो सभी क्षेत्र कही ना कही सभी की जड मे एक पितृसत्ताक रुपी मकडी जाल ने अपना भयानक जाल पिरोये हुए है और इस जाल को तोडना महिला और पुरुष दोनो की जिम्मेदारी है ! ये समाज नारी और पुरुष हे दोनो के बारे मे समानता की मानसिकता बन जाएगी तो सचमुच स्त्री अपना वास्तविक रूप धारण कर सकती है ! यह वास्तव छुपा नही रह सकता हमारे धर्म ने नारी को अबला बनाकर एक कोणेमे फेक दिया था! पर 1947 मे देश स्वतंत्र हुआ और 1950 मे संविधान लागू हुवा तपसे लेकर आज सोचा जाये तो संविधानिक अधिकार मिलने के बाद स्त्रीओने हर एक क्षेत्र में अपनी कामयाबी की है यही एक सच आज दिखाई देता है !

मुख्य शब्द: नारी, वास्तव्य, समानता, कठीणाई, बदलावI

DOI:10.61165/sk.publisher.v11i12.72

Download Full Article from below:

नारीका अस्तित्व एक सामाजिक समस्यार


Pages:361-364

Cite this aricle
मसराम, डॉ. माया बी. (2024). नारीका अस्तित्व एक सामाजिक समस्या. SK International Journal of Multidisciplinary Research Hub, 11(12), 361–364. https://doi.org/10.61165/sk.publisher.v11i12.72

Creative Commons License
This work is licensed under a
Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 2.5 India License